Hindi Bhasha Ka Vikas Kaise Hua | Devanagari Lipi | Vyanjan ke bhed

Hindi Bhasha Ka Vikas Kaise Hua | Devanagari Lipi | Vyanjan ke bhed PDF | Apbhransh aur Purani Hindi ka Sambandh | Devanagari Varnamala

हिंदी का विकास

हिंदी भाषा का विकास 1000 ईसवी के आसपास अपभ्रंश से हुआ, भाषाओं का विकास इस कर्म से हुआ

संस्कृत >  पाली>  प्राकृत>  अपभ्रंश>  हिंदी

हिंदी की बोलियां –  हिंदी के पांच भाषाएं एवं 18 बोलियां हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है

उपभाषा बोलियाँ
पश्चिमी हिंदी (a) बृजभाषा (b) कन्नौजी (c) खड़ी बोली (d) कोरवी (e) बुंदेली (f) बांगरू ( हरियाणवी)
पूर्वी हिंदी (a) अवधि (b) बघेली (c) छत्तीसगढ़ी
राजस्थानी (a) मेवाती (b) मालवी (c) मारवाड़ी (d) जयपुरी (e) ढूंढानी
बिहारी (a) भोजपुरी (b) मैथिली (c) मगही
पहाड़ी (a) गढ़वाली (b) कुमाऊनी (c) नेपाली

अपभ्रंश

अपभ्रंश, आधुनिक भाषाओं के उदय से पहले उत्तर भारत में बोलचाल और साहित्य रचना की सबसे जीवंत और प्रमुख भाषा (समय लगभग छठी से १२वीं शताब्दी)। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था है जो प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है।
अपभ्रंश के कवियों ने अपनी भाषा को केवल ‘भाषा’, ‘देसी भाषा’ अथवा ‘गामेल्ल भाषा’ (ग्रामीण भाषा) कहा है, परंतु संस्कृत के व्याकरणों और अलंकारग्रंथों में उस भाषा के लिए प्रायः ‘अपभ्रंश’ तथा कहीं-कहीं ‘अपभ्रष्ट’ संज्ञा का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अपभ्रंश नाम संस्कृत के आचार्यों का दिया हुआ है

हिंदी और अपभ्रंश का संबंध

अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूप है इससे हिंदी और उसकी बोलियों का विकास हुआ जैसे कि
शौरसेनी अपभ्रंश – पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती, पहाड़ी
कैकेय अपभ्रंश – लहंद (वर्तमान में यह भाषा पाकिस्तान के कुछ भाग में बोली जाती है)
टक्का अपभ्रंश – पंजाबी
ब्राचढ़ अपभ्रंश – सिंधी
महाराष्ट्र अपभ्रंश – मराठी
मागधी अपभ्रंश – बिहारी, बगुला, उड़िया, असमिया
अर्धमागधी अपभ्रंश – पूर्वी हिंदी
हिंदी खड़ी बोली पर आधारित भाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से 1000 इसके आसपास हुआ इस प्रकार हिंदी लगभग 1000 वर्ष पुरानी भाषा है

देवनागरी लिपि

भाषा को लिखने के लिए जिन ध्वनी संकेतों का प्रयोग किया जाता है उन्हें लिपि कहते हैं प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है देवनागरी लिपि का प्रयोग हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली भाषाओं को लिखने में किया जाता है देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ, सत्यापन की एक शैली नगर नागर शैली कहलाती थी जिसमें चतुर्भुजी आकृतियां होती थी नागरी लिपि में चतुर्भुजी अक्षर हैं इस कारण इसका नाम नागरी पड़ा और फिर देव भाषा संस्कृत के लिए प्रयुक्त होने से यह देवनागरी जाने लगी

देवनागरी वर्णमाला

स्वर= अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ = 11
अनुस्वार- अं = 1
विसर्ग- अ: = 1

व्यंजन के भेद / प्रकार

स्थान के आधार पर व्यंजन के भेद
उच्चारण के स्थान (मुख के विभिन्न अवयव) के आधार पर – कंठ, तालु आदि
कंठ्य : (गले से) क ख ग घ ङ = 5
तालव्य : (तालू से) च छ ज झ ञ य श = 7
मूर्धन्य : ( तालू के मूर्धा भाग से) ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ ष = 8
दन्त्य : (दांतों के मूल से) त थ द ध न = 5
वर्त्स्य : (दंतमूल से) (न) स ज़ र ल = 5
ओष्ठ्य : (दोनों होठो से) प फ ब भ म = 5
दंतोष्ठ्य : (निचले होठ और ऊपर के दांतों से) व फ़
स्वरयंत्रीय : (स्वरयंत्र से) ह
उष्म (संघर्षी) व्यंजन : श ष स ह
संयुक्ताक्षर व्यंजन : क्ष त्र ज्ञ श्र
द्विगुण व्यंजन : ढ़, ड़

Note

(a) देवनागरी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण है 11 स्वर , 41 व्यंजन
(b) अनुस्वार और : को किशोरी दास वाजपेई ने अयोगवाह कहां है और इन्हें स्वर ना मानकर व्यंजन कहां है
(c) सरकारी किताबों में जो वर्णमाला उपलब्ध उसमें द्विगुण व्यंजन नहीं है तथा संयुक्त व्यंजनों में श्र नहीं है यहां जो वर्णमाला दिखती है वह देवनागरी का व्यवहारिक रूप है इसमें प्रयुक्त सभी वर्ण हिंदी लेखन में प्रयुक्त होते हैं देवनागरी लिपि रोमन लिपि(अंग्रेजी भाषा की लिपि) से अधिक वैज्ञानिक है

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